आख़िर क्यों भगवान शिव ने चंद्रमा को किया मस्तक पे धारण

भगवान शिव को शक्ति का अपार भंडार माना जाता है। इसलिए उनकी पूजा सदियों से की जाती रही है। वे जीवन और मृत्यु के देवता हैं। वे विनाशक और जीवनदाता दोनों रूपों में पूजे जाते हैं। शिव पुराण में ऐसी कई कहानियां हैं जो उनके इन रूपों का वर्णन करती हैं। ऐसी ही एक कहानी है जिसमें भगवान शिव ने चंद्रमा को बचाने के लिए उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया था।आइये जानते हैं विस्तार से –

कथा:

समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए इसका पान किया। विषपान से उनका शरीर जलने लगा। चंद्रमा ने उनसे प्रार्थना की कि वे उन्हें अपने मस्तक पर धारण करें।शिव पहले नहीं मानें क्योंकि चंद्रमा विष की तीव्रता सहन नहीं कर पाते। लेकिन देवताओं के अनुरोध पर उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण कर लिया।

मान्यताएं:

मान्यता है कि तभी से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं और सृष्टि को शीतलता प्रदान करते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान शिव ने चंद्रमा को पुनर्जीवित करने के लिए उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया था।

दक्ष का शाप:

चंद्रमा ने दक्ष प्रजापति की 27 कन्याओं से विवाह किया था। रोहिणी उनके सबसे प्रिय थीं। इससे अन्य कन्याएं नाराज हो गईं और दक्ष ने चंद्रमा को शाप दे दिया। इस शाप के कारण चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त हो गए और उनकी कलाएं क्षीण होने लगीं।नारदजी की सलाह पर चंद्रमा ने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने उन्हें प्रदोष काल में पुनर्जीवित होने का वरदान दिया।

इस तरह चंद्रमा को भगवान शिव की कृपा से अपने सभी कष्टों से मुक्ति मिली।

“चंद्रमा को भगवान शिव के मस्तक पर धारण करने की कथा उनके पराक्रम और दयालुता का प्रतीक है। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।”

 

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